नेशनल हाउसिंग बैंक (NHB) ने हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के इंट्रेस्ट सबवेंशन स्कीम पर रोक लगा दी है. एनएचबी ने ऐसी योजनाओं में फ्रॉड को रोकने के लिए यह कदम उठाया है, लेकिन इससे लाखों खरीदारों के लिए संकट खड़ा हो सकता है. यही नहीं, इससे रियल एस्टेट सेक्टर के लिए भी काफी मुश्किल बढ़ेगी जो पहले से ही परेशान है.
नए सर्कुलर में NHB ने होम फाइनेंस कंपनियों से कहा है कि ऐसे लोन उत्पाद देना बंद करें जिसमें ग्राहक की जगह लोन का ब्याज डेवलपर देता है यानी इंस्ट्रेट का सबवेंशन किया जाता है. हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों का रेगुलेशन एनएचबी ही करता है (हालांकि, बजट प्रस्ताव के मुताबिक आगे से यह जिम्मा भी रिजर्व बैंक को मिल जाएगा) और बैंकों के होम लोन पर रेगुलेशन रिजर्व बैंक का होता है.
क्या होती है सबवेंशन स्कीम
असल में सबवेंशन स्कीम के तहत बिल्डर ‘5:95′ और ’10:90’ जैसी लुभावनी योजनाओं की पेशकश करते हैं. इसके तहत फ्लैट की लागत का महज 5 या 10 फीसदी डाउन पेमेंट देकर ग्राहक फ्लैट बुक करा लेता है और इस फ्लैट के बाकी 80 से 90 फीसदी लागत का लोन मिल जाता है.
लोन की यह राशि कई हिस्सों में बिल्डर को मिल जाती है और मकान के पूरा बनने तक इस पर जो ब्याज आता है यानी हर महीने ईएमआई उसका भुगतान बिल्डर ही कर देता है. बिल्डर को इसमें फायदा यह है कि उसे ईएमआई देने पर भी यह फंड सस्ता पड़ता है, क्योंकि होम लोन पर ब्याज 9 फीसदी से कम ही है, जबकि बाहर से कर्ज लेने पर बिल्डर को काफी ज्यादा ब्याज देना पड़ता है.
दूसरी तरफ, ग्राहक को फायदा यह है कि मामूली रकम में फ्लैट बुक हो जाता है और जब तक पजेशन नहीं मिलता उसे ईएमआई के बोझ से भी मुक्ति रहती है. लेकिन ऐसी योजनाओं में कई बिल्डर जालसाजी करते हैं या जब कोई प्रोजेक्ट फंस जाता है, तो बिल्डर और ग्राहक दोनों के लिए मुसीबत खड़ी हो जाती है.
एनएचबी ने कहा है कि उसका यह आदेश पहले से चलने वाले सबवेंशन स्कीम पर भी लागू होगा. सर्कुलर के मुताबिक जो बिल्डर पहले से ऐसी स्कीम चला रहे हैं, उन्हें अब कंस्ट्रक्शन लिंक्ड पेमेंट प्लान में शिफ्ट करना होगा. हाउसिंग कंपनियां डेवलपर को किसी प्रोजेक्ट के निर्माण के मुताबिक ही राशि जारी करेंगे. इससे लोन के दुरुपयोग को रोका जा सकेगा. एनएचबी का जोर रियल्टी प्रोजेक्ट्स को समय से पूरा कराने पर है.