देश में पिछले साल कोरोना से बने हालातों के बीच लोगों की मुश्किलें कुछ कम करने के मकसद से भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने लोन देने वाली संस्थाओं को लोन के भुगतान पर मोराटोरियम की सुविधा देने की बात कही थी। जो कि, पहले 1 मार्च 2020 से 31 मई 2020 के बीच दिए गए लोन पर थी, लेकिन जिसे बाद में बढ़ा कर 31 अगस्त 2020 तक कर दिया गया था। वहीं, इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट ने लोन मोराटोरियम पॉलिसी में हस्तक्षेप करने से मना करते हुए अहम् फैसला लिया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला : लोन मोराटोरियम पॉलिसी से जुड़ा अहम् फैसला लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा है कि, पूरे ब्याज में छूट नहीं दी जा सकती है, यदि ऐसा कर दिया गया तो, इस का सीधा प्रभाव जामकर्ताओं पर पड़ेगा। इसके अलावा कोर्ट ने मोरेटोरिम की अवधि बढ़ाने और किसी और वित्तीय राहत की मांग के लिए भी साफ़ मना कर दिया है। मोरेटोरिम की अवधि को लेकर कोर्ट का कहना कि,
सुप्रीम कोर्ट ‘मोरिटोरिम के दौरान अवधि के लिए कोई चक्रवृद्धि ब्याज नहीं लिया जाएगा। आर्थिक नीति निर्णयों पर न्यायिक समीक्षा का सीमित दायरा है। कोर्ट व्यापार और वाणिज्य के शैक्षणिक मामलों पर बहस नहीं करेगा। यह तय करना हमारा काम नहीं है कि सार्वजनिक नीति बेहतर हो सकती थी। बेहतर नीति के आधार पर नीति को रद्द नहीं किया जा सकता है। सरकार, RBI विशेषज्ञ की राय के आधार पर आर्थिक नीति तय करती है। कोर्ट से आर्थिक विशेषज्ञता की उम्मीद नहीं की जा सकती।कोर्ट ने आगे कहा है कि, ‘यदि इस मामले में 2 दृष्टिकोण संभव हो तो भी हस्तक्षेप नहीं कर सकते, आर्थिक नीति की सुदृढ़ता तय नहीं कर सकते। हम आर्थिक नीति पर केंद्र के सलाहकार नहीं हैं। महामारी ने पूरे देश को प्रभावित किया, सरकार ने वित्तीय पैकेजों की पेशकश की। सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य, नौकरियों का ध्यान रखना पड़ता था। आर्थिक तंगी थी, लॉकडाउन के कारण करों में खोने के बाद आर्थिक राहत की घोषणा करने के लिए केंद्र, RBI से नहीं पूछ सकते।’
शीर्ष न्यायालय का कहना : बताते चलें, इस मामले में 2 करोड़ तक के कर्ज पर चक्रवृद्धि ब्याज और साधारण ब्याज के बीच अंतर लिया गया था। शीर्ष न्यायालय ने 31 अगस्त 2020 से आगे लोन मोराटोरियम का विस्तार नहीं करने के केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था। साथ ही कहा कि, ‘यह एक नीतिगत निर्णय है कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर पिछले साल लोन मोराटोरियम की घोषणा की गई थी।’
भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ का कहना : इस मामले की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि, ‘शीर्ष न्यायालय केंद्र की राजकोषीय नीति संबंधी फैसले की न्यायिक समीक्षा तब तक नहीं कर सकता है, जब तक कि यह दुर्भावनापूर्ण और मनमाना न हो। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह पूरे देश को प्रभावित करने वाली महामारी के दौरान राहत देने के संबंध में प्राथमिकताओं को तय करने के सरकार के फैसले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। बताते चलें, पीठ ने रियल एस्टेट और बिजली क्षेत्रों के विभिन्न उद्योग संगठनों द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर अपने फैसले में यह बात कही।
गौरतलब है कि, दायर की गई याचिकाओं में कोरोना से आतंक को मद्देनजर रखते हुए लोन मोनाटोरियम की अवधि और अन्य राहत उपायों को बढ़ाने की मांग की गई थी। जिसपर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है।