इंदौर : छोटे किसानों को संगठित कर उन्हें सही समय पर धन और परामर्श देने का काम करने वाले कृषि उत्पाद संगठनों (एफपीओ) के लिए जहां एक तरफ सरकार ने कई घोषणाएं की है और उनकी संख्या बढाने के लिए लक्ष्य निर्धारित किया है वहीं दूसरी तरफ ज़रूरत के समय उन्हें धन की उपलब्धता करने के लिए चुनिन्दा बैंक या वित्तीय संगठन ही राज़ी होते हैं।
मध्यप्रदेश में आज 500 से अधिक कृषि उत्पाद संगठन सक्रिय हैं जो कि छोटे किसानों को संगठन की शक्ति देने के साथ-साथ उन्हें सही परामर्श और समय पर बीज-खाद खरीदने के लिए धन की उपलब्धता भी सुनिश्चित करते हैं। लेकिन इन्हें लोन देने वाली संस्थाएं चुनिन्दा ही हैं, जो कि 14-15% ब्याज दर पर उन्हें लोन देती हैं।
एफपीओ को लोन देने वाली एक संस्था किसानधन के वाईस प्रेसिडेंट पंकज कुमार अजमानी ने बताया कि देशभर में आज की तारिख में 4000 एफपीओ सक्रिय हैं जिनकी संख्या इस वित्तीय वर्ष के अंत तक 10 हज़ार तक ले जाने का सरकार का उद्देश्य है। हालांकि इन संस्थाओं को सरकार की ओर से वित्तीय सहायता दी जाती है लेकिन बोनी के समय और फसल काटने के समय यदि सही वक्त पर किसान को पैसों का भुगतान ना किया जाए तो फसल ख़राब होने की संभावना होती है। इसीलिए हम इस क्षेत्र में उतरे हैं, यहीं सुनिश्चित करने के लिए कि किसानों को सही समय पर धन मिले।
क्या होते हैं एफपीओ?
दरअसल किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) कम्पनीज एक्ट के तहत गठित किसानों की एक कंपनी होती है, जिसमे प्रत्येक किसान एक शेयरहोल्डर के रूप में जुड़ा होता है। एक एफपीओ में औसत 500-2000 किसान जुड़े होते हैं। इस किसानों की कंपनी का एक सीईओ भी होता है, जो कि सभी गतिविधियों को संचालित करने का काम करता है। सरकार द्वारा एफपीओ के सदस्यों की संख्या के आधार पर उन्हें 3 लाख रूपए से 15 लाख रूपए तक का अनुदान भी प्रदान किया जाता है।
इन एफपीओ का कम्पनीज एक्ट के मुताबिक सालाना ऑडिट भी होता है। मध्यप्रदेश में, इंदौर और आसपास के क्षेत्र के कई एफपीओ एक विशिष्ट क्षेत्र में काम कर के छोटे स्तर के किसानों की आय बढाने का काम कर रहे हैं।
लेकिन समस्या ये है कि इन एफपीओ को सरकारी और निजी बैंकों द्वारा किसी प्रकार का लोन या फंडिंग प्रदान नहीं की जा रही है। ऐसे में छोटे किसानों की सहायता करने वाले ये संगठन किसानधन जैसी संस्थाओं से लोन लेते है। ऐसी संस्थाओ को प्रोत्साहित और संख्या में बढ़ाने की आवश्यकता है|