इंदौर: पिछले कुछ सालों में हमने भारत में मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में अपार विकास होते हुए देखा है। जिस प्रकार से भारत ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में उभरकर स्थापित हो रहा है, उसके अनुसार यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2030 तक भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर दुनिया की अर्थव्यवस्था में 500 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष का योगदान देगा। लेकिन इस प्रकार का विकास हमारी फैक्ट्री को स्मार्ट किए बिना संभव नहीं है।
अलग अलग क्षेत्रों के कई बड़े उद्योगों ने अपनी टेक्नोलॉजी को तेज़ी से बदलते हुए फ्लेक्सिबल मैन्युफैक्चरिंग की ओर कदम उठाना शुरू कर दीया है लेकिन लघु और मध्यम उद्योगों (एसएमई) के लिए अभी भी ये एक दूर की बात है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि लघु और मध्यम उद्योगों के पास डिजिटल समाधानों को लेकर जागरूकता, उन तक की पहुँच और उसे लागू करने के लिए आवश्यक पूँजी नहीं होती है। बड़े और लघु एवं मध्यम स्तरीय उद्योगों में आधुनिक तकनीक को आत्मसात करने में आ रहे इस अंतर की वजह से ना सिर्फ एसएमई क्षेत्र को बड़ा नुकसान हो रहा है बल्कि ये किसी भी देश के लिए अच्छा नहीं हो सकता क्यूंकि बड़े उद्योग भी छोटे उद्योगों पर ही निर्भर होते हैं। अगर इस दौड़ में कोई एक वर्ग भी पिछड़ रहा है तो बाकियों पर भी इसका असर होना लाज़मी है।
डिजिटल इंडिया मिशन के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सुचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, गुजरात सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और नास्कॉम के संयुक्त प्रयास से स्थापित गांधीनगर में नास्कॉम के सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस (सीओई) फॉर आईओटी का उद्देश्य है भारत में स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना। यह सेंटर छोटे उद्योगों को आ रही चुनौती को सामने से स्वीकार करते हुए, उनका समाधान ढूँढने और एक बेहतर इकोसिस्टम बनाने और की ओर काम कर रहा है।
नास्कॉम सीओएई के सेंटर हेड और सीनियर डायरेक्टर अमित सलूजा ने बताया कि “नास्कॉम के सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस ने भारत का सबसे बड़ा डीप-टेक कोलबोरेटिव इकोसिस्टम स्थापित किया है जिसमें उद्योग, स्टार्टअप, सरकारी तंत्र, शोध और शैक्षणिक संस्थाएं एक जगह पर मौजूद हैं। यह सीओई लघु उद्योगों और स्टार्टअप को साथ काम करने और कुछ नया इजात करने के लिए एक मंच प्रदान करता है जिससे उत्पादकता, दक्षता, और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में एआई और आईओटी आधारित तकनीक से नवाचार लाया जा सके।”
आज के अस्थिर वातावरण में लघु और माध्यम उद्योगों को आ रही समस्याओं पर चर्चा करने के लिए नैसकॉम सीओई में स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग फोरम की भी शुरुआत की गई है जो की विशेष रूप से उन मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों के लिए है जिनका वार्षिक टर्नओवर 1000 करोड़ रुपए से कम है। इसके तहत उद्योगों के प्रमुखों के लिए मास्टरक्लास, क्षमता विकास कार्यशालाएं और डेमो के लिए कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं और साथ ही ब्लू कलर कर्मचारियों के लिए भी डिजिटल स्किल्स सीखने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
नास्कॉम सीओई उन लघु उद्योगों को भी मदद कर रहा है जो आधुनिक तकनीक और उपकरणों को इस्तेमाल करना चाहते हैं। इसके नास्कॉम पहले उन उद्योगों की ज़रूरतों, चुनौतियों को समझकर उनके लिए ऐसे किफायती और आसानी से लागू होने वाले समाधान बताता है जिससे उनके प्लांट की उत्पादकता और दक्षता में इजाफा हो सके। यह सेंटर छोटे उद्योगों को, नए स्टार्टअप और टेक कंपनियों के साथ भी जोड़ता है जिनके पास उनकी समस्याओं के सही समाधान हैं और सिर्फ भारत में ही नहीं विदेश में भी उन्हें लागू किया जा सकता है।
श्री सलूजा ने आगे बताया कि, “हम कई सारे एमएमई के साथ काम कर रहे हैं और टेक टूल्स के उपयोग से हो रही उनकी तरक्की को देखकर बहुत गौरवान्वित हैं। उनकी यह सफलता कई अन्य एसएमई को आगे आकर तकनीक आधारित समाधान खोजने के लिए प्रेरित करेगी।”
नास्कॉम सीओई कुछ बड़े मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स के साथ भी काम कर रहा है, जिन्होंने पिछले दो वर्षों में नास्कॉम सीओई टीम द्वारा आयोजित पांच मैन्युफैक्चरिंग इनोवेशन चैलेंज के लिए अपनी केस स्टडी को नामांकित किया है। अब तक 21 मैन्युफैक्चरिंग उद्योग और 425 से ज्यादा डीप टेक स्टार्टअप ने इस चैलेंज में भाग लिया है और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के लिए तैयार हो रहे नए उत्पादों के उदाहरणों को समझा है।
नास्कॉम सीओई का स्टार्टअप अक्सेलरेशन प्रोग्राम – ग्रो-एक्स देशभर के कई ऐसे स्टार्टअप को आकर्षित करता है जो कि अपने तरक्की सफ़र में सहयोग चाहते हैं। अबतक 500 से ज्यादा स्टार्टअप अलग-अलग रूप से नास्कॉम सीओई से जुड़ चुके हैं और उनमें से 70 से ज्यादा ने ग्रो-एक्स प्रोग्राम से जुड़कर इससे मिलने वाले बेहतर मार्केट एक्सेस, फंडिंग सपोर्ट, मेंटरिंग और कौशल विकास का फायदा उठाया है।
स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग रिसर्च कॉन्क्लेव, नास्कॉम सीओई की एक अन्य पहल है कॉलेज और शोध संस्थाओं में हो रही नवाचार युक्त शोध को इंडस्ट्री के सामने लाने की, जिससे इस शोध का व्यवसायीकरण हो सके।
अपनी डिजिटल यात्रा को गति देने के इच्छुक मैन्युफैक्चरिंग उद्योग भी नास्कॉम सीओई द्वारा विकसित इकोसिस्टम का लाभ उठा सकते हैं। सेंटर की विभिन्न पहलों के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप हमसे SmartManufacturing@nasscom.in पर संपर्क कर सकते हैं।