नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शनिवार सुबह 11 बजे वर्ष 2020-21 का बजट पेश करेगी। इस बार वित्त मंत्री के सामने पिछले एक दशक का सबसे कठिन बजट पेश करने की चुनौती है, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्ती के दौर से गुजर रही है। हालांकि इन सभी चुनौतियों के बीच आम लोगों को बजट से बड़ी उम्मीदें हैं। इधर, मोदी सरकार में अपना दूसरा बजट पेश करने वाले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने कई बड़ी चुनौतियां है। राजकोषीय घाटा लक्ष्य से ज्यादा होने की आशंका है। इसी तरह, टैक्स कलेक्शन लक्ष्य से कम रहने की आशंका है। जीडीपी की रफ्तार घटने और महंगाई बढ़ने की वजह से एक स्टैगफ्लेशन जैसी स्थिति बन रही है, जिसमें बेरोजगारी और मांग में कमी बनी रहती है।
इन सेक्टर को संभालना होगा
सभी सरकारी-गैर सरकारी एजेंसियों के अनुमानों के मुताबिक इस वित्त वर्ष में जीडीपी ग्रोथ करीब 5 फीसदी, निजी उपभोग में 5.8 फीसदी, मैन्युफैक्चरिंग में 2 फीसदी और कृषि क्षेत्र में महज 2.8 फीसदी की बढ़त हो सकती है, अगर ऐसा हुआ तो जीडीपी 11 साल में सबसे कम, निजी उपभोग 7 साल में सबसे कम, मैन्युफैक्चरिंग 15 साल में सबसे कम और कृषि में 4 साल की सबसे कम बढ़त हो सकती है।
सता रही महंगाई ‘डायन‘
बढ़ती महंगाई ने सभी को परेशान कर रखा है। दिसंबर 2019 में उपभोक्ता मूल्य आधारित यानी खुदरा महंगाई 7.35 फीसदी पर पहुंच गई, जबकि एक साल पहले जनवरी 2019 में खुदरा महंगाई 1.97 फीसदी ही थी। महंगाई बढ़ने से यह रास्ता भी नहीं बचता कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती कर अर्थव्यवस्था को कुछ राहत दे।
राजकोषीय घाटे की चुनौती
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में सरकार ने राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.3 फीसदी तक रखने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करना अब काफी मुश्किल है। नवंबर 2019 तक राजकोषीय घाटा लक्ष्य से 14.8 फीसदी ज्यादा तक रहा है।
कर्ज प्रवाह की रफ्तार सुस्त
बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के कर्ज वितरण की रफ्तार थम से गई है। इस वित्त वर्ष में अप्रैल से जनवरी तक के कर्ज प्रवाह में महज 7.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि एक साल पहले की समान अवधि में इसमें 14.50 फीसदी की बढ़त हुई थी।
टैक्स कलेक्शन लक्ष्य से कम
इस वित्त वर्ष के लिए टैक्स कलेक्शन भी बजट में तय लक्ष्य से करीब 2 लाख करोड़ रुपए कम रह सकता है। वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में 24.59 लाख करोड़ रुपए के टैक्स कलेक्शन का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन नवंबर तक यह महज 20.8 लाख करोड़ रुपए हो पाया है। अगर वित्त मंत्री कॉरपोरेट या लोगों की व्यक्तिगत आयकर में कोई कमी करती हैं, तो इससे राजकोष पर दबाव और बढ़ेगा।
सरकारी खर्च बढ़ाना भी मुश्किल
अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए मांग को बढ़ाना एक प्रमुख उपाय है और इसके लिए निवेश जरूरी है। निजी क्षेत्र नकदी को दबाए हुए हैं, ऐसे में सरकारी खर्च पर ही मुख्य दारोमदार है, लेकिन कर संग्रह लक्ष्य से कम होने की वजह से सरकारी खर्च भी ज्यादा बढ़ाना संभव नहीं लग रहा। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए बजट में 3.39 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत व्यय का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन नवंबर 2019 तक सरकार सिर्फ 2.14 लाख करोड़ रुपए ही खर्च कर पाई है।