इंदौर: विज्ञान हर क्षेत्र में तरक्की कर रहा है। आधुनिक तकनीक से न केवल गंभीर बीमारियों के इलाज संभव हो गए है बल्कि सर्जरी तक बिना चीर-फाड़ किए हो रही है। ऐसा ही एक कीर्तिमान केयर सीएचएल हॉस्पिटल के डॉक्टर मनीष पोरवाल ने बनाया है। उन्होंने दिल की कृत्रिम माइट्रल वाल्व को आधुनिक तकनीक से बिना सर्जरी के इंप्लांट कर दिया है। यह सेंट्रल इंडिया में संभवत: पहली बार हुआ है।
72 वर्षीय रमेशचंद्र शर्मा पिछले 8 सालों से दिल की गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। 2016 में डॉ. मनीष पोरवाल द्वारा उनकी बायपास सर्जरी और माइट्रल वाल्व रिप्लेसमेट हो चुका है। करीब चार महीने पहले, मार्च 2024 में अचानक उनकी कृत्रिम वाल्व से रिसाव शुरू हो गया, जिससे उन्हें कमजोरी आने लगी और सास लेने में तकलीफ होने लगी। ऐसे में डॉ. मनीष पोरवाल ने दूसरी सर्जरी करने की बजाय आधुनिक केथेटर (तार) पद्धति से ह्दय के कृत्रिम माइट्रल वाल्व में नया वाल्व बैठाने का निर्णय लिया। 25 जुलाई को डॉ. मनीष पोरवाल एवं उनकी टीम, डॉ. नितिन मोदी, डॉ. विजय महाजन, डॉ. पुनीत गोयल, डॉ. सुनील शर्मा, डॉ. अरविंद रघुवंशी, डॉ. राजेश कुकरेजा और डॉ. करण पोरवाल द्वारा 4 मिमी के सुराख से ट्रास माइट्रल वाल्व रिप्लेसमेंट किया गया।
केयर सीएचएल हॉस्पिटल के डॉ. मनीष पोरवाल ने बताया कि ज्यादा उम्र के लोगों में बायोलॉजिकल वाल्व (लेदर वाल्व) लगाया जाता है, जो 10-15 सालों तक चलता है लेकिन जब इसमें रिसाव शुरू हो जाता है तो दूसरा वाल्व लगाना पड़ता है। ऐसे केस में दूसरी सर्जरी कर एक और वाल्व लगाना पड़ता है, जिसमें रिस्क बहुत बढ़ जाता है। यह केस बिलकुल वैसा ही था। मरीज की पहले कृत्रिम माइट्रल वाल्व रिप्लेसमेंट के साथ ही बायपास सर्जरी भी हो चुकी है। ऐसे में रिस्क ज्यादा थी। इसलिए हमने सर्जरी न करते हुए आधुनिक पद्धति का इस्तेमाल कर एक और कृत्रिम वाल्व मरीज के दिल में समाविष्ट किया है। इस काम में केयर सीएचएल के मैनेजमेंट की तरफ से भी मनीष गुप्ता और उनकी टीम का भी सहयोग रहा।
इस सफल प्रकिया ने न केवल मरीज को नया जीवन दिया है, बल्कि यह साबित कर दिया है कि आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के जरिए गंभीर दिल की बीमारियों का इलाज बिना बड़े ऑपरेशन के बिना भी संभव है। इसमें रिस्क तो न के बराबर ही होता है, साथ ही समय की भी बचत होती है।
किस उम्र में पड़ती है वाल्व रिप्लेसमेट की जरूरत
दिल की वाल्व खराब होने की कोई तय उम्र नहीं होती। वाल्व रिप्लेसमेंट करीब 10 साल की उम्र से लेकर 80 साल के व्यक्ति का किया जा चुका है। युवावस्था में रीयुमैटिक हार्ट बीमारी होती है, जिसमें वाल्व में इंफेक्शन हो जाता है। वहीं, बड़ी उम्र के लोगों की वाल्व उम्र के साथ खराब होने लगती है, जिसे डिजनरेशन कहा जाता है।