कोलकाता। अधिकतर चाय कंपनियों ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में एक साल पहले की समान अवधि के मुकाबले कमजोर मुनाफा दर्ज किया है। तिमाही के दौरान चाय कंपनियों को दोतरफा चुनौतियों का सामना करना पड़ा जिससे मुनाफा प्रभावित हुआ। चाय की कीमतों में पिछले साल की रिकॉर्ड ऊंचाई के बाद गिरावट और मजदूरी लागत में बढ़ोतरी से कंपनियों की परेशानी बढ़ गई।

पिछले साल कोविड-19 वैश्विक महामारी से पैदा हुए व्यापक व्यवधान के कारण मात्रात्मक बिक्री में गिरावट के बावजूद कंपनियों ने अधिक मुनाफा दर्ज किया क्योंकि चाय की कीमतों में तेजी आई थी। लेकिन जून से आपूर्ति सामान्य होने के साथ ही कीमतों में गिरावट शुरू हो गई थी।

इक्रा की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में भी कीमतों में मजबूती जारी थी लेकिन चालू वर्ष के पीक उत्पादन महीनों की शुरुआत के साथ ही कीमतें घटने लगी थीं। वित्त वर्ष 2022 की पहली छमाही के दौरान उत्तरी भारत के नीलामी केंद्रों पर औसत मूल्य सालाना आधार पर 60 रुपये प्रति किलोग्राम यानी लगभग 23 फीसदी नीचे आ गई थी।

आयात में वृद्धि : इसके अलावा आयात में वृद्धि होने से चाय उत्पादों की समस्याएं कहीं अधिक बढ़ गई हैं। इंडियन टी एसोसिएशन (आईटीए) के चेयरमैन विवेक गोयनका ने कहा, ‘पिछले दो वर्षों के दौरान आयात में काफी वृद्धि हुई है। यह निश्चित तौर पर चिंता की बात है क्योंकि भारत में आज जरूरत से अधिक आपूर्ति की समस्या पैदा हो गई है। आयात होने से अत्यधिक आपूर्ति की स्थिति कहीं अधिक खराब होगी जिससे कीमतों में गिरावट आएगी।’

इंडियन टी एसोसिएशन की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, जनवरी से अगस्त 2021 के दौरान आयात 1.697 करोड़ किलोग्राम रहा जो 2020 में 1.265 करोड़ किलोग्राम रहा था। केन्या से आयात में 146 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

फिलहाल कुछ समय से आयात चिंता का कारण बना हुआ है। साल 2017 में गोरखालैंड आंदोलन के कारण दार्जिलिंग में 104 दिनों की बंदी होने के बाद खरीदारों ने दार्जिलिंग चाय के बजाय नेपाली चाय की ओर रुख किया था। घरेलू बाजार में खुदरा चाय विक्रेता उसके खरीदार हैं और जर्मनी जैसे निर्यात बाजार में इसे ‘हिमालयन’ मिश्रण के रूप में बेचा जाता है।

हालांकि पिछले साल नेपाल से आयात 66.5 करोड़ किलोग्राम से घटकर 47.7 लाख किलोग्राम रह गया। गुड्रिक ग्रुप के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी अतुल अस्थाना ने कहा, ‘नेपाल से आयात काफी हद तक कम कर हो गया है क्योंकि पश्चिम बंगाल सरकार ने सीमापार तस्करी पर लगाम लगाने के लिए काफी सख्ती की है। परिणामस्वरूप दार्जिलिंग चाय की कीमतों में पिछले साल के मुकाबले वृद्धि दर्ज की गई है।’

गुणवत्ता का फायदा : भले ही कीमतें पिछले साल की तुलना में कम हों लेकिन गुणवत्तापूर्ण चाय की कीमतों में तेजी बरकरार है। अस्थाना ने कहा, ‘हम एक समूह के तौर पर पिछले साल के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं और इसकी एकमात्र वजह गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना है।’

मैकलॉयड रसेल इंडिया के पूर्णकालिक निदेशक आजम मोनेम ने कहा, ‘घरेलू बाजार में गुणवत्तापूर्ण चाय की मांग बढऩे लगी है। जब तक खपत और निर्यात में वृद्धि नहीं होगी तब तक बाजार केंवल गुणवत्तापूर्ण चाय पर ध्यान केंद्रित करेगा लेकिन बाजार निचले स्तर से नहीं उठेगा।’

हालांकि समस्या यह है कि कुछ ही एस्टेट्स गुणवत्तपूर्ण चाय का उत्पादन करते है। गुणवत्तपूर्ण चाय की बिक्री न केवल अधिक कीमत पर होती है बल्कि वह आसानी से बिक भी जाती है। गोयनका ने कहा, ‘लेकिन कुल उत्पादन के मुकाबले उसकी मात्रा काफी कम होती है।’