भारत ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ हाल में हुए एक समझौते में अहम बदलाव किया है। इसके तहत विवाद निपटान की समय सीमा 5 वर्षों से घटाकर 3 वर्ष कर दी गई है, जो आदर्श द्विपक्षीय निवेश संधि (बीआईटी) की शर्तों के अनुरूप नहीं है। अगर इस अवधि के दौरान भारत का न्याय तंत्र दो देशों के बीच निवेश समझौते पर विवाद नहीं सुलझा पाया तो विदेशी निवेशक अंतरराष्ट्रीय पंचाट में अपील कर सकते हैं।

भारत ने यूएई के साथ 13 फरवरी को अबू धाबी में एक निवेश समझौता किया था मगर यह 31 अगस्त से प्रभावी हो पाया। दोनों देशों के बीच पहले से मौजूद निवेश समझौता पिछले महीने खत्म हो गया था। भारत ने यूएई के साथ समझौते में शेयर एवं बॉन्ड को सुरक्षित निवेश के तौर पर रखा है। आदर्श द्विपक्षीय निवेश संधि में केवल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को ही सुरक्षा मिली है और शेयर एवं बॉन्ड जैसे पोर्टफोलियो निवेश शामिल नहीं किए गए हैं।

केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत और यूएई के बीच द्विपक्षीय निवेश संधि से निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा और स्पष्ट एवं स्थिर कर प्रणाली शुरू हो पाएगी। अगर निवेशकों को लगेगा कि उन्हें न्याय नहीं मिला है तो इस समझौते के तहत वे अंतरराष्ट्रीय पंचाट में भी अपील कर सकते हैं।

गोयल ने निवेश पर भारत-यूएई उच्च-स्तरीय संयुक्त कार्य बल की 12वीं बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘आज विभिन्न मसलों पर चर्चा हुई। कुछ भारतीय कंपनियों को लगता है कि यूएई के साथ कुछ समस्या हैं और यूएई की कंपनियों को भी कभी-कभी ऐसा लगता है। बीआईटी के जरिये दोनों पक्ष इन समस्याओं का समाधान निकाल सकते हैं।गोयल के साथ यूएई के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने भी बैठक की अध्यक्षता की थी।

विशेषज्ञों को लगता है कि समयसीमा पांच वर्ष से घटाकर तीन वर्ष करने से देश के भीतर ही विवाद निपटाने की भारत की क्षमता कमजोर हो सकती है और बार-बार अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की जरूरत पड़ेगी।

दिल्ली की संस्था जीटीआरआई के अनुसार बीआईटी के जरिये यूएई से निवेश तो आएगा मगर इससे भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता बढ़ने यानी मामला विदेशी अदालतों में जाने का जोखिम भी बढ़ जाएगा। उसने कहा कि अब दूसरे देश भी इसी शर्त पर भारत के साथ द्विपक्षीय निवेश समझौते करना चाहेंगे। भारत इस समय ब्रिटेन और यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ द्विपक्षीय निवेश समझौते पर बातचीत कर रहा है।

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