मुंबई: भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनियां नकली दवाओं की समस्या से निपटने के लिए अपने प्रयास तेज कर दिए हैं। कंपनियां दवाओं की पैकेजिंग अनूठे तरीके से कर रही हैं। इसमें निजी जांच एजेंसियों को भी शामिल किया जा रहा है। नकली दवाओं का जोखिम काफी ज्यादा है। यह उपभोक्ताओं को नुकसान तो होता ही है प्रमुख ब्रांडों की साख भी खराब हो जाती है।
सितंबर की शुरुआत में कुछ सरकारी अस्पतालों में नकली ऐंटीबायोटिक्स पहुंचाने वाले एक गिरोह का भंडाफोड़ हुआ, जो कई राज्यों में काम कर रहा था। यह दवा टेलकम पाउडर की तरह थी और उसमें कुछ भी नहीं था। इसे हरिद्वार में पशुओं की दवा की एक प्रयोगशाला में टेलकम पाउडर और स्टार्च मिलाकर बनाया गया था। नकली ऐंटरीबायोटिक दवाएं उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में भेजी गई थीं। नागपुर ग्रामीण पुलिस ने इसका भंडाफोड़ किया था।
अगस्त में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने गुणवत्ता जांच में नाकाम रहने वाली दवाएओं की सूची जारी की थी। इसके बाद टॉरंट फार्मा, सन फार्मा और अलकेम लैबोरेटरीज सहित कई बड़ी देसी दवा कंपनियों ने फौरन सफाई पेश की थी। उन्होंन कहा था कि बताई गई दवाएं नकली थीं और उनका उत्पादन कंपनियों द्वारा नहीं किया गया था। सीडीएससीओ ने जिन दवाओं के नाम जारी किए थे उनमें पैन-डी, क्लैवन 625, पैन्टोसिड और शेल्कल 500 जैसे लोकप्रिय ब्रांड शामिल थे।
बाजार से नकली दवाओं को बाहर करने के लिए भारतीय औषधि नियामक ने 2023 के मध्य में प्रमुख 300 दवाओं के लिए बारकोड या क्यूआर कोड लगाने की अपील की थी। इन दवाओं में एलेग्रा, शेल्कल, कैलपॉल, डोलो और मेफ्टाल स्पास आदि शामिल हैं।
कई कंपनियां अपने प्रमुख ब्रांडों पर क्यूआर कोड लगा रही हैं, जिससे ग्राहक दवाओं की प्रामाणिकता की जांच कर सकते हैं। सन फार्मा ने बयान में कहा, ‘हमारे कुछ प्रमुख ब्रांडों में अब लेबल पर क्यूआर कोड छपा होता है, जिससे मरीज आसानी से स्कैन कर देख सकते हैं कि दवा असली है या नकली। दवाओं को और सुरक्षित बनाने के लिए हम 3डी सुरक्षा स्ट्रिप का भी उपयोग कर रहे हैं।’