मुंबई. बाजार नियामक सेबी म्युचुअल फंडों और पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज के बीच का अंतर कम करने के लिए एक नई परिसंपत्ति श्रेणी को मंजूरू दे सकता है। सूत्रों ने एक समाचार पत्र को बताया कि पैसिव फंड कंपनियों को म्युचुअल फंड लाइट के मसौदे को भी मंजूरी मिल सकती है। ये फैसले 30 सितंबर को सेबी बोर्ड की आगामी बैठक में हो सकते हैं।
इस बैठक पर बारीक नजर रहेगी। सेबी की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच पर विपक्षी दल कांग्रेस और शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च के हितों के टकराव के आरोपों के बाद यह पहली बैठक हो रही है। इसके बाद कर्मचारियों के असंतोष का मामला भी उभरा, जिन्होंने वित्त मंत्रालय को भी अपनी मांगों की सूची सौंपी है।
आमतौर पर सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के प्रतिनिधित्व वाला सेबी का निदेशक मंडल हर तिमाही में एक बार बैठक कर प्रतिभूति बाजार से जुड़े सुधारों को मंजूरी देता है। नई श्रेणी उन निवेशकों को सेवाएं देगी जो जोखिम वाले दांव लगाने के इच्छुक होंगे।
इसमें निवेश का न्यूनतम मूल्य 10 लाख रुपये होगा जो पीएमएस की 50 लाख की न्यूनतम सीमा से काफी कम है। हालांकि नई श्रेणी के लिए स्पष्ट अंतर और अग्रिम डिस्क्लोजर अनिवार्य बनाए जाएंगे ताकि निवेशकों में किसी तरह की दुविधा न हो। इस बारे में सेबी को भेजे गए ईमेल का कोई जवाब नहीं मिला।
मौजूदा म्युचुअल फंड कंपनियों को नया परिसंपत्ति वर्ग पेश करने की इजाजत मिलेगी। सूत्रों ने कहा कि नए नियमों की संभावना भांपकर कई कंपनियों ने पहले ही टीम बनाना शुरू कर दिया है और अपनी पेशकश की के लिए रणनीति बना रही हैं।
उद्योग की एक कंपनी ने कहा कि कई बड़े म्युचुअल फंड घराने नए परिसंपत्ति वर्ग के लिए निवेश प्रबंधकों और टीम के सदस्यों की तलाश शुरू कर चुके हैं क्योंकि ऐसी रणनीति के लिए उन्हें विशिष्टता वाली टीम की दरकार होगी।
सेबी ने ऑप्शंस में भी खासी सख्ती का प्रस्ताव रखा है। इसमें खरीदारों से ऑप्शन प्रीमियम का अग्रिम संग्रह शामिल है ताकि लिवरेज में कमी आए। जून की पिछली बोर्ड बैठक के दौरान सेबी ने एफऐंडओ सेगमेंट के तहत शेयरों के चयन के लिए पात्रता मानकों में बदलाव किया था।