-स्थानीय भाषाओं को मिलेगा बढ़ावा
नई दिल्ली। देश भर में नवोन्मेषकों और उद्यमियों को सशक्त बनाने की महत्वाकांक्षा के साथ, अटल इनोवेशन मिशन (एआईएम) नीति आयोग अपनी तरह का पहला वर्नाक्युलर इनोवेशन प्रोग्राम (वीआईपी) लेकर आया है, जो देश में नवोन्मेषकों और उद्यमियों को भारत सरकार की 22 अनुसूचित भाषाओं में नवाचार इको-सिस्टम तक पहुंच बनाने में सक्षम बनाएगा।
वीआईपी के लिए आवश्यक क्षमता निर्माण को लेकर एआईएम 22 अनुसूचित भाषाओं में से प्रत्येक की पहचान के बाद एक वर्नाक्युलर टास्क फोर्स (वीटीएफ) को प्रशिक्षण प्रदान करेगा। प्रत्येक टास्क फोर्स में स्थानीय भाषा के शिक्षक, विषय विशेषज्ञ, तकनीकी लेखक और क्षेत्रीय अटल इनक्यूबेशन सेंटर (एआईसी) का नेतृत्व शामिल है।
ट्रेन-द-ट्रेनर कार्यक्रम शुरू करेगा आयोग : कार्यक्रम को शुरू करने के लिए एआईएम नीति आयोग एक ट्रेन-द-ट्रेनर कार्यक्रम शुरू कर रहा है, जहां यह आईआईटी दिल्ली के डिजाइन विभाग के साथ वीटीएफ को डिजाइन थिंकिंग तथा उद्यमिता एवं 22 भाषाओं और संस्कृतियों में इन विषयों के अनुकूलन के लिए सहयोग करेगा।
इसके अलावा उद्योगजगत के दिग्गजों ने डिजाइन थिंकिंग विशेषज्ञता प्रदान करने के लिए हाथ मिलाया है और कार्पोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) के प्रायोजकों ने इस कार्यक्रम का उदारतापूर्वक समर्थन करने के लिए सहमति व्यक्त की हैं। दिसंबर 2021 से अप्रैल 2022 की अवधि में टास्क फोर्स को प्रशिक्षित करने पर इको सिस्टम को स्थानीय इनोवेटरों के लिए खोल दिया जाएगा।
वीआईपी का शुभारंभ करते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार ने कहा कि विविध सामाजिक तथा सांस्कृतिक ताना-बाना भारत की अपनी पहचान है, जिसमें क्षेत्रीय भाषाएं सबसे प्रमुख सांस्कृतिक संसाधनों में शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि वर्नाक्युलर इनोवेशन प्रोग्राम हमारे समुदायों की डिजाइन और इनोवेशन क्षमताओं को मजबूत करता है, जिससे स्थानीय उद्यमियों, कारीगरों और इनोवेटरों को उस ज्ञान को प्राप्त करने के साथ एआईएम द्वारा विकसित तकनीकी सामग्री के रूप से सहायता मिलती है। इससे भारत को डिजाइन विशेषज्ञों और नवाचार के प्रैक्टिशनरों का एक मजबूत स्थानीय नेटवर्क बनाने में मदद मिलेगी।
कार्यक्रम में नीति आयोग के मिशन निदेशक डॉ. चिंतन वैष्णव ने कहा कि वीआईपी नवाचार तथा उद्यमिता के क्षेत्र में भाषा की बाधा को दूर करने की एक पहल है, जो व्यवस्थित रूप से रचनात्मक अभिव्यक्तियों और लेन-देन की भाषाओं को अलग कर देगा।
डॉ. चिंतन ने 2011 की जनगणना का हवाला देते हुए कहा कि केवल 10.4 प्रतिशत भारतीय ही अंग्रेजी बोलते हैं, जबकि ज्यादातर अपनी दूसरी, तीसरी या चौथी भाषा के रूप में इसका इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने कहा कि स्थानीय भाषा के नवोन्मेषकों के लिए समान अवसर क्यों नहीं बनाना चाहिए, जो हमारी 90 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं।
यह करने वाला भारत पहला देश : आपको बता दें कि भारत इस तरह की पहल शुरू करने वाला दुनिया का पहला देश हो सकता है, जहां 22 भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी की एक नवाचार इको-सिस्टम बनायी जा रही है।