इंदौर : खाद्य तेल एवं तिलहन की कीमतों पर नियंत्रण करने के साथ ही उपभोक्तओ को उचित मूल्य पर खाद्य तेलों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के मुद्दे पर भारत सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के सचिव द्वारा बुलाई गई राष्ट्रीय स्तर की बैठक में सोपा के अध्यक्ष डॉ. डेविश जैन ने कहा की भारत को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रमुख रूप से सरकारी प्रोत्साहन, तिलहन फसलों के साथ अन्य कृषि फसलों की फसल विविधीकरण और उच्च उत्पादकता स्तर के साथ तिलहन की खेती के तहत अधिक से अधिक क्षेत्रफल को लाने की आवश्यकता पर जोर दिया।

डॉ. जैन ने कहा कि खाद्य तेल की कीमतों को नियंत्रण में लाने के लिए आयात शुल्क, उपकर और शुल्क में कटौती केवल एक अल्पकालिक उपाय होगा। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में खाद्य तेल की कम कीमतों पर उपलब्धता के कारण कई वर्षों तक अंधाधुंध आयात ने घरेलू क्षेत्र के तिलहन उत्पादन एवं खाद्य तेल उद्योग को आगे बढ़ने से रोक दिया है।खाद्य तेलों के आयात में 30 लाख टन की कमी करने के राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन के लक्ष्य के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि घरेलू तिलहन उत्पादन में उत्साहजनक वृद्धि, लॉकडाउन और कोविड महामारी के कारण होटल उद्योगों में खाद्य तेलों की खपत में गिरावट के फलस्वरूप पिछले दो वर्षों में खाद्य तेल के आयात में गिरावट आई है, लेकिन खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है और यह तभी संभव होगा जब हम देश में हरित क्रांति की तरह तिलहन क्रांति लाएंगे।

समाज के अल्प सुविधा प्राप्त/कमजोर वर्ग को किफायती खाद्य तेल उपलब्ध कराने के पहलू पर डॉ. जैन ने कहा कि इसके लिये कम आयात शुल्क सही विकल्प नहीं है और इससे सरकार को राजस्व में भी कमी होगी। तेलों पर लगे आयात शुल्क का उपयोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से महत्वपूर्ण खाद्य तेल के साथ-साथ किसानों को कम लागत के इनपुट प्रदान करने के लिए किया जा सकता है।